डाक टाइम्स न्यूज समाचार पत्र गोरखपुर
वृद्ध माता-पिता घर से निकाल दिये जाते हैं ये जानते हुए भी कि ये जीवन का परम सत्य है और इस स्थिति का सामना उसे करना ही पड़ता है। बच्चें जो भावी जीवन और समाज के निर्माता है उनका जीवन के इस सत्य से अवगत कराने उनमें प्रेम कर्तव्य भाव सेवा भाव की नींव डालने के उद्देश्य से सेंट मेडिकल कॉलेज रोड स्थित सेंट पॉल स्कूल के 11 वीं 12 वीं के छात्र छात्राओं ने अपने मनोविज्ञान विषय की प्रवक्ता डॉक्टर श्वेता जॉनसन के निर्देशन में पादरी बाजार स्थित मदर टेरेसा ओल्ड होम्स में पहुँचकर असहाय वृद्ध जनों व मानसिक अस्वस्थ लोगों से बातें कि तथा उनकी सेवा कर उन्हें खाने-पीने की वस्तुओं के साथ अन्य जरूरत के सामान बांटे उनके साथ मनोरंजन के पल बिताए और उनके भावनाओं को समझने की कोशिश की। इस पूरे भावुक पलों के दौरान उनके साथ राजनीति विज्ञान की प्रवक्ता डॉक्टर शालिनी श्रीवास्तव व मदर टेरेसा ओल्ड होम्स की सिस्टर बेनेट भी मौजूद रही। डॉक्टर श्वेता जॉनसन ने इस विषय पर बात करते हुए यह बताया कि छात्र-छात्राओं को महज किताबी शिक्षा दें देना पर्याप्त नहीं है ऐसे भ्रमण व कार्यक्रमों से उनमें जीवन की वास्तविक गतिविधियों की प्रति संवेदनशीलता का सृजन होता है, शिक्षा का वास्तविक जीवन में प्रयोग करने का अवसर मिलता है साथ ही अलग अलग वृद्ध जनों से बातेँ कर उनके दुःख सुख के साथी के रूप में कुछ करने की प्रेरणा मिलती है।
उन्होंने इस भ्रमण को सफल बनाने में सहयोग करने के लिए सभी का धन्यवाद करते हुए अपील किया कि अधिक से अधिक नागरिक ऐसे समाज सेवी संस्थाओं का सहयोग करें वह अपने बच्चों को महल की चकाचौंध नहीं बल्कि मानव प्रेम के प्रति भी प्रेरित करें।
साथ ही राजनीति विज्ञान की प्रवक्ता डॉक्टर शालिनी श्रीवास्तव ने कहा कि वृद्ध माता पिता को यदि बुढ़ापे को सुखमय बनाना है तो अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने होंगे माता-पिता के प्यार और संस्कार में इतना सामर्थ होना चाहिए कि उनका बच्चा एक जन कल्याण और लोक सेवक बनें क्योंकि माता-पिता के द्वारा मिला संस्कार बच्चों के भविष्य पर प्रकाश डालते हैं। संस्कार जितने शुद्ध होंगे बच्चा उतना ही ज्ञानी और आध्यात्मिक गुणों से परिपूर्ण होगा। ऐसे पवित्र विचार जब माता-पिता अपने बच्चों में संस्कार डालेंगे तो वह बच्चा आगे चलकर धर्मात्मा पुरुष बनेगा, देशभक्त बनेगा और माता-पिता का भक्त बनेगा। बदलते हुए आधुनिकता के इस परिवेश में आज माता-पिता अपने पुत्र या पुत्री के दिनचर्या पर नियंत्रण नहीं रख पाते और बच्चें बेहतर और पवित्र विचार से वंचित रह जाते और सम्मान करना भूल जाते हैं तथा वृद्धावस्था में वही बच्चे अपने ही माता-पिता का सेवा करने से कतराने लगते हैं। प्राचीन समय में ऋषि जनों द्वारा अपने शिष्यों को ये बताया जाता था कि माता-पिता ही भगवान का स्वरुप होते है इसलिए उनकी सेवा करने से पीछे नहीं हटना चाहिए क्योंकि माता पिता के चरणों में ही स्वर्ग होता है।